गुरुवार, 22 फ़रवरी 2018

अंधेरा कायम है..

फिर नया हाकिम आया
नयी रोशनी के वादे और इरादे लाया
दहाड़ वो गूंजी कि खलबली मच गई
कुत्तों ने हवा का रुख देखा
और आँखें मूँद ली..समझदार थे..
हड्डी चबाते रहे
यहाँ वहाँ जहाँ तहाँ
गाजरे लटक गई
और अच्छे भले दो पाये,
खरगोश बन लगाने लगे दौड़
शुरू हुई दुम हिलाने की होड़
फिर भेड़ियों ने मचाया शोर
और
हाकिम समझ न पाया झोल,
कुत्तों ने धीरे से नजर घुमाई
और आहिस्ता से हड्डी सरकाई
अब हाकिम मशगूल है
उसी हड्डी में और
अंधेरा आज भी कायम है..

--अक्षिणी

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें