रविवार, 30 अप्रैल 2017

तुम हो तो हम हैं..

तुम नहीं तो कुछ नहीं,
तुम हो तो हम हैं..

तेरी सुरत को तरसे मेरा मन,
तेरी सीरत को मचले आँगन..

तुम्हें याद करती हैं
करवटों की सलवटें.
सुनना चाहती हैं,
तेरे कदमों की आहटें.

जो तुम हो तो हर खुशी है,
तुम से ही ये ज़िंदगी है..

तेरे बगैर चुभता है,
सलोना बिछौना
तेरी राह तकता है
कोना कोना..

तुमसे ही मेरे कदमों में खम है..
तुमसे ही मेरे शब्दों में दम है..

दिल तोड़ता है तेरा
यूं रोज़ न आना..
देर से आ के कोई
बहाना बनाना..

तुम हो तो मेरी आवाज़ में सुरूर  है,
तुम हो तो मेरे  चेहरे पे नूर है..

तुम हो तो सजती हूँ
मैं सुहागन की तरह..
तुम ना आओ तो लगती हूँ 
एक डायन की तरह..

मेरी हस्ती है तेरे कारण..
सारी मस्ती है तेरे कारण..

मेरी काम वाली बाई ..
तुम हो तो मैं हूँ,
जो तुम नहीं तो
कुछ भी नहीं..

अक्षिणी भटनागर

4 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत खूब...
    "तुम हो तो सजती हूँ
    मैं सुहागन की तरह..
    तुम ना आओ तो लगती हूँ
    एक डायन की तरह.."
    हा... हा... हा... बहुत बढ़िया। मजदूर दिवस पर शानदार स्वीकृति ।

    जवाब देंहटाएं
  2. Bohot hi badhiya...sabse rochak kavita me aaya twist hai

    जवाब देंहटाएं