बुधवार, 8 फ़रवरी 2017

मुस्करा के मिल

कहीं किसी रोज इठला के मिल,
लहरा के मिल, बल खा के मिल,
शरमा न यूं, 'इंतिहा' ज़िंदगी,
कहीं किसी रोज मुस्करा के मिल.

कहीं किसी रोज इतरा के मिल,
चाह के पन्नों पे बिखरा के मिल,
झुका न यूं नजर 'इंतिहा' ज़िंदगी,
कहीं किसी रोज मुस्कुरा के मिल.

ठहर किसी ठोर ,अलसा के मिल,
बहक जरा देर, बहला के मिल.
जरा देखें तेरे तौर 'इंतिहा' ज़िंदगी,
कहीं किसी रोज मुस्करा के मिल.

कहीं किसी रोज लहरा के मिल,
महक जरा देर महका के मिल,
छू कर देखें तुझे 'इंतिहा' ज़िंदगी,
कहीं किसी रोज पास आ के मिल.

-अक्षिणी भटनागर-

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