शुक्रवार, 3 फ़रवरी 2017

मदमस्त सिद्धहस्त..

अक्षरकृमियों के इस वन में
सब कोई मंचस्थ हैं..
जो व्यस्त हैं वे तृप्त हैं,
जो अस्त हैं वे त्रस्त हैं
और जो न व्यस्त हैं न अस्त हैं
वो सब के सब बड़े पस्त हैं.
कुछ स्वस्थ हैं तो सब उदरस्थ है.
(हाजमा अच्छा है भाई !)
फिर कुछ संत हैं कुछ भक्त हैं,
कुछ त्यक्त हैं कुछ आसक्त है.
सत्य सबके अंतस है
ये अलग बात है,अव्यक्त है.
जो धर लेते हैं वो सख्त हैं
जो कह देते हैं वो मस्त हैं
जो भी हो सब के सब मदमस्त हैं,
कमबख्त सारे सिध्दहस्त हैं..
-अक्षिणी भटनागर
(सारे छपास के रोगियों को सादर समर्पित)

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